अमेरिका का H-1B वीजा या चीन का K वीजा, विदेश में नौकरी पाने के लिए दोनों में बेहतर कौन?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा के लिए 1,00,000 डॉलर यानी करीब 88 लाख रुपये की भारी फीस लगाने का ऐलान कर दिया है. यह फैसला खासकर भारतीय पेशेवरों के लिए बड़ा झटका है, क्योंकि एच-1बी वीजा में करीब 71 प्रतिशत स्लॉट भारतीयों को ही मिलते हैं. इस अचानक बढ़ी हुई फीस ने अमेरिका में काम कर रहे या नौकरी के लिए सोच रहे भारतीयों में चिंता पैदा कर दी है.
इस बीच चीन ने अपने नए ‘K वीजा’ के माध्यम से वैश्विक पेशेवरों के लिए रास्ता खोल दिया है. चीन का यह नया वीजा अगले महीने से लागू होगा और इसके तहत दुनिया के योग्य पेशेवर बिना नौकरी के भी चीन में आकर काम के अवसर तलाश सकते हैं.
चीन का स्वागत
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने वैश्विक पेशेवरों को चीन में आने और काम करने का आमंत्रण दिया. उन्होंने कहा कि “वैश्वीकृत दुनिया में प्रतिभाओं की सीमा-पार आवाजाही तकनीकी और आर्थिक प्रगति के लिए बहुत जरूरी है. चीन सभी योग्य पेशेवरों का स्वागत करता है ताकि वे यहां आकर मानवता की प्रगति और अपने करियर में सफलता हासिल कर सकें.”
इस कदम के जरिए चीन तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में अपने मानव संसाधन को मजबूत करना चाहता है. जबकि अमेरिका ने अपनी वीजा नीति सख्त कर दी है और फीस बढ़ा दी है, चीन ने वैश्विक पेशेवरों के लिए अवसर बढ़ा दिए हैं.
के-वीजा की खास बातें
चीन का नया के-वीजा 1 अक्टूबर से लागू होगा. इसके तहत योग्य युवा विज्ञान, तकनीक और अन्य क्षेत्रों के पेशेवरों को बिना किसी घरेलू नियोक्ता या संस्था के आमंत्रण के देश में प्रवेश मिलेगा. यानी अब किसी नौकरी ऑफर के बिना भी पेशेवर चीन में जाकर अवसर तलाश सकते हैं.
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विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की बढ़ी हुई फीस और चीन का आसान वीजा विकल्प भविष्य में वैश्विक टैलेंट की दिशा बदल सकता है. भारतीय पेशेवर अब सोचने पर मजबूर होंगे कि वे अमेरिका के महंगे वीजा में जाएं या चीन के नए अवसर का फायदा उठाएं.
भारतीय पेशेवरों की प्रतिक्रिया
एच-1बी वीजा में बढ़ी फीस के बाद अमेरिका में काम कर रहे या नौकरी के लिए तैयारी कर रहे भारतीयों में असमंजस की स्थिति बन गई है. कई लोग चिंता कर रहे हैं कि क्या वे अपनी नौकरी खो देंगे या वीजा की नई फीस के कारण घर लौटने को मजबूर होंगे.
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