Supreme News24

आजादी के 78 साल बाद भी… पुर्तगाली सरकार से जुड़े भूमि विवाद पर क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?



सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली में एक जमीन को लेकर आधी सदी से अधिक पुराने विवाद का बुधवार (24 सितंबर, 2025) को निस्तारण कर दिया. यह भूमि कभी तत्कालीन पुर्तगाली सरकार के पास थी. जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा.

बेंच ने अपने 78 पेज के आदेश में कहा, ‘इस मामले में शायद सबसे अधिक चौंकाने वाली बात यह नहीं है कि इस कोर्ट को आधी सदी से भी पहले उत्पन्न हुए विवाद पर निर्णय देने के लिए अनुरोध किया गया है, बल्कि यह और भी बड़ी विडंबना है कि आजादी के 78 साल बाद भी यह कोर्ट औपनिवेशिक शक्तियों द्वारा प्रदत्त भूमि अधिकारों से उत्पन्न विवाद को सुलझाने में लगा हुआ है, जिन्होंने कभी इस देश की संपत्ति और संसाधनों का शोषण किया था.’

बेंच ने कहा कि औपनिवेशिक विरासत के संबंध में इस पीठ द्वारा व्यक्त की गई किसी भी आलोचना को अपीलकर्ताओं के दावों या उनके द्वारा मांगे गए अधिकारों की वैधता पर प्रतिबिंब के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए. पीठ ने कहा कि ये अपील हाईकोर्ट के 17 फरवरी, 2005 के फैसले से उत्पन्न हुई हैं, जो केंद्र शासित प्रदेश स्थित संपत्तियों से संबंधित भूसु्म अनुदानों को रद्द करने से संबंधित एक मुद्दे पर था.

उक्त संपत्तियां मूल रूप से पूर्ववर्ती पुर्तगाली सरकार के स्वामित्व वाली भूखंड थे और 1923 और 1930 के बीच अपीलकर्ता दिव्याग्नाकुमारी हरिसिंह परमार और अन्य के पूर्वज को कृषि योग्य भूमि के लिए कुछ शर्तों के अधीन प्रदान किए गए थे. बाद में दादरा एवं नगर हवेली के कलेक्टर ने 30 अप्रैल, 1974 के आदेश के तहत इन अनुदानों को रद्द कर दिया, जिसके बाद राज्य और अपीलकर्ताओं के बीच कई दशकों से एक लंबी कानूनी लड़ाई जारी है.

बेंच ने कहा कि अपीलकर्ताओं को दी गई भूमि में अधिकारों की प्रकृति और सीमा निर्धारित करने के लिए शासकीय कानून सरकारी विनियमन 985 है, जिसे पुर्तगाली स्टेट के राजस्व प्रशासन को विनियमित करने के लिए 22 सितंबर, 1919 को लागू किया गया था और जांच को इसके प्रावधानों तक ही सीमित रखा जाना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालतों के समवर्ती निष्कर्षों को हाईकोर्ट द्वारा पलटना सीपीसी की धारा 100 के तहत उसके अधिकार क्षेत्र की सीमाओं का उल्लंघन नहीं है. बेंच ने कहा, ’30 अप्रैल, 1974 का कलेक्टर का आदेश दुर्भावना से प्रभावित नहीं था और इसे अपीलकर्ताओं को 1971 के भूमि सुधार विनियमन के तहत वैधानिक लाभों से वंचित करने के इरादे से पारित किया गया नहीं माना जा सकता.’ पीठ ने अपीलों को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया और 24 फरवरी, 2006 के यथास्थिति आदेश को रद्द कर दिया.



Source link

Thank you so much for supporting us.

Discover more from Taza News

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading