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आरजेडी-कांग्रेस के लिए क्यों जरूरी हैं मुकेश सहनी? महागठबंधन को बनाना पड़ा डिप्टी सीएम का चेहरा



बिहार विधानसभा चुनाव के लिए महागठबंधन ने गुरुवार (23 अक्टूबर 2025) को  तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का और वीआईपी चीफ मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम कैंडिडेट बनाने की घोषणा की. इस घोषणा के थोड़ी देर बाद मुकेश सहनी ने कहा कि वह साढ़े तीन साल से इस पल का इंतजार कर रहे थे. कभी बीजेपी के सहयोगी रहे मुकेश सहनी को अब आजरेडी के तेजस्वी यादव के नेतृत्व में गठबंधन की नैया पार लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है.

मुकेश सहनी ने बीजेपी पर पार्टी तोड़ने का आरोप लगाया

डिप्टी सीएम कैंडिडेट के रूप में नाम की घोषणा होने के बाद मुकेश सहनी ने शपथ ली कि वह बीजेपी को जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं. उन्होंने बीजेपी पर वीआईपी पार्टी को तोड़ने और उसके विधायकों को लुभाने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा, “बीजेपी ने हमारी पार्टी तोड़ी और हमारे विधायकों को तोड़ दिया. उस समय हमने हाथ में गंगाजल लेकर प्रतिज्ञा ली थी. अब समय आ गया है. महागठबंधन के साथ मजबूती से खड़े होकर हम बिहार में अपनी सरकार बनाएंगे और बीजेपी को राज्य से बाहर कर देंगे.”

तेजस्वी के आगे नहीं झुके मुकेश सहनी

बिहार की आबादी में निषाद समाज की हिस्सेदारी केवल 2.5 फीसदी है. वीआईपी बिहार की 243 सीटों में से केवल 15 सीटों पर चुनाव लड़ रही है इसके बावजूद मुकेश सहनी महागठबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण नेता बने हुए हैं. उन्होंने आरजेडी के आगे झुकने से भी इनकार कर दिया और दो ऐसी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं जहां तेजस्वी यादव ने भी अपने उम्मीदवार को टिकट दिया है.

आरजेडी और कांग्रेस के लिए क्यों जरूरी हैं मुकेश सहनी?

जातीय गणित और जमीनी स्तर पर मुकेश सहनी की मजबूत पकड़ ने उन्हें बिहार चुनाव में अहम चेहरा बना दिया है. उनकी पार्टी की वेबसाइट पर उन्हें मल्लाह का बेटा बताया गया है और कहा गया है कि उनका बचपन बहुत गरीबी में बीता और छोटी उम्र से ही उन्होंने निषाद समुदाय के पिछड़ेपन को करीब से देखा.”

सुपौल जिले में एक मछुआरा परिवार में जन्मे सहनी एक ऐसे समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं जो बिहार की आबादी का लगभग 2.5 फीसदी है. आंकड़ों में यह छोड़ा लग सकता है, लेकिन राजनीतिक रूप से यह जाति प्रभावशाली है जो गंगा के किनारे कई जिलों में फैला हुआ है. ऐसे में डिप्टी सीएम के रूप में मुकेश सहनी के नाम का ऐलान कर महागठबंधन पिछले और हाशिए पर खड़े समुदायों के बीच अपनी अपील को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है.

न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक सीट बंटवारे पर असंतोष जताने के बाद वीआईपी महागठबंधन से लगभग बाहर हो गई थी. हालांकि फिर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के हस्तक्षेप के बाद ही वीआईपी ने महागठबंधन में बने रहने का फैसला किया. मुकेश सहनी को सभी विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं पर व्यापक प्रभाव रखने वाला नेता माना जाता है.

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