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इंडियन नेवी की ताकत को मिलेगा इसरो का सहारा! धांसू सैटेलाइट की मदद से काम होगा आसान, जानें कौन सी तारीख को LVM-3 रॉकेट की मदद से भरेगा उड़ान



भारतीय नौसेना के लिए तैयार किए गए संचार सैटेलाइट सीएमएस-03 (CMS-03) की लॉन्चिंग की तारीख तय हो गई है. इसे जीसैट-7आर (GSAT-7R) के नाम से भी जाना जाता है. इसरो ने घोषणा की है कि इस विशेष सैटेलाइट को 2 नवंबर की शाम 5 बजकर 26 मिनट पर श्रीहरिकोटा से एलवीएम-3 (LVM-3) रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. पहले इस सैटेलाइट को साल 2024 के अंत तक लॉन्च किया जाना था, लेकिन तकनीकी कारणों से इसमें कुछ देरी हुई. अब इसकी सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं और लॉन्चपैड पर एलवीएम-3 को स्थापित कर प्रक्षेपण-पूर्व प्रक्रियाएं शुरू कर दी गई हैं.

सीएमएस-03 सैटेलाइट का वजन करीब 4,400 किलोग्राम है. LVM-3 की 5वीं परिचालन उड़ान में सवार होकर अंतरिक्ष की ओर रवाना होगा. यह भारत से भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा (GTO) में भेजा जाने वाला अब तक का सबसे भारी संचार सैटेलाइट होगा. सीएमएस-03 सैटेलाइट भारतीय नौसेना के जहाजों, पनडुब्बियों और विमानों के बीच ध्वनि, वीडियो और डेटा संचार के लिए कई बैंडों का उपयोग करेगा. इससे भारत की समुद्री निगरानी और संचार क्षमताओं में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होगी. इसकी मदद से वह दुश्मन देश जैसे पाकिस्तान और चीन के हरकतों पर पैनी नजर रखने का काम करेगा.

CMS-03 एक मल्टी-बैंड कम्युनिकेशन सैटेलाइट

इसरो वैज्ञानिकों के अनुसार, CMS-03 एक मल्टी-बैंड कम्युनिकेशन सैटेलाइट है, जो भारतीय भूभाग के साथ-साथ विस्तृत समुद्री क्षेत्र में सेवाएं प्रदान करेगा. गौरतलब है कि LVM-3 रॉकेट वही प्रक्षेपण यान है, जिसने चंद्रयान-3 मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था, जिससे भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बना था.

सैन्य उपग्रह का इस्तेमाल
सैन्य उपग्रह (Military satellites) का इस्तेमाल मुख रूप से रक्षा-संबंधी कामों के लिए किया जाता है, जैसे कि सैन्य संचार, नेविगेशन (जैसे GPS/GLONASS/IRNSS), संकेत-गुप्त संकलन (SIGINT), छवि टोही (IMINT) और लगातार निगरानी (Persistent surveillance). आधुनिक युद्ध और राष्ट्रीय सुरक्षा में इंटेलिजेंस का महत्व काफी जरूरी हो जाता है, क्योंकि बिना युद्ध के मैदान में उतरकर ही उपग्रह दुश्मन के इन्फ्रास्ट्रक्चर, बल , एक्टिविटी और संसाधनों के बारे में जरूरी डेटा दे सकते हैं.

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