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एकतरफा तलाक को चुनौती पर विस्तृत सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट, मुस्लिम महिलाओं ने की है दूसरे धर्म की महिलाओं जैसे अधिकार की मांग


मुस्लिम पुरुषों को एकतरफा तलाक का अधिकार देने वाली तलाक-ए-हसन समेत दूसरी व्यवस्थाओं के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 19 नवंबर को अंतिम सुनवाई करेगा. कोर्ट ने राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और बाल अधिकार संरक्षण आयोग जैसी संस्थाओं से उनकी राय पूछी है. साथ ही, इन व्यवस्थाओं को लेकर धार्मिक सामग्री को भी कोर्ट में रखने को कहा है.

सुप्रीम कोर्ट में इस बारे में दाखिल याचिकाएं 3 साल से लंबित हैं. ये याचिकाएं बेनजीर हिना, नाजरीन निशा समेत कई ऐसी महिलाओं की हैं जो एकतरफा तलाक से व्यक्तिगत रूप से प्रभावित हैं. उनका कहना है कि मुस्लिम महिलाओं को भी दूसरे धर्मों की महिलाओं जैसे अधिकार मिलने चाहिए. याचिकाओं में कहा गया है कि धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर मुस्लिम महिलाओं को कानून की नजर में समानता (अनुच्छेद 14) और सम्मान से जीवन जीने (अनुच्छेद 21) जैसे मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं रखा जा सकता.

याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट तलाक-ए-हसन और अदालती तरीके से न होने वाले दूसरे सभी किस्म के तलाक को असंवैधानिक करार दे. शरीयत एप्लिकेशन एक्ट, 1937 की धारा 2 रद्द करने का आदेश दिया जाए. साथ ही डिसॉल्युशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एक्ट, 1939 भी पूरी तरह निरस्त हो.

22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ 3 तलाक बोल कर शादी रद्द करने को असंवैधानिक करार दिया था. तलाक-ए-बिद्दत कही जाने वाली इस व्यवस्था को लेकर अधिकतर मुस्लिम उलेमाओं का भी मानना था कि यह कुरान के मुताबिक नहीं है. कोर्ट के फैसले के बाद सरकार एक साथ 3 तलाक बोलने को अपराध घोषित करने वाला कानून भी बना चुकी है, लेकिन तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-अहसन जैसी व्यवस्थाएं अब भी बरकरार हैं. इनके तहत पति 1-1 महीने के अंतर पर 3 बार लिखित या मौखिक रूप से तलाक बोल कर शादी रद्द कर सकता है.



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