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ऑनलाइन मनी गेमिंग से बैन हटाने की मांग, याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब



सुप्रीम कोर्ट ने ऑनलाइन गेमिंग कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार (4 नवंबर, 2025) को केंद्र से विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा. यह कानून ऑनलाइन मनी गेम्स पर प्रतिबंध लगाता है और बैंकिंग सेवाओं और उनसे संबंधित विज्ञापनों पर रोक लगाता है.

जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ को सूचित किया गया कि केंद्र ने याचिकाओं में किए गए अंतरिम अनुरोध पर अपना जवाब दाखिल कर दिया है. बेंच ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल मुख्य याचिका पर भी एक व्यापक जवाब दाखिल करें.’

कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकीलों को जवाब की प्रति पहले ही दे दी जाए और अगर वे कोई प्रत्युत्तर दाखिल करना चाहते हैं, तो वे जल्द से जल्द ऐसा कर सकते हैं. पीठ ने मामले की सुनवाई 26 नवंबर के लिए स्थगित कर दी.

इस मामले में पेश हुए सीनियर एडवोकेट सी ए सुंदरम ने बेंच को बताया कि ऑनलाइन गेमिंग एक महीने से अधिक समय से पूरी तरह बंद है. सुनवाई के दौरान एक वकील ने पीठ को बताया कि इस मामले में एक नई रिट याचिका दायर की गई है, लेकिन उसे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया गया.

वकील ने कहा, ‘मैं (याचिकाकर्ता) एक शतरंज खिलाड़ी हूं और यह मेरी आजीविका का साधन है. मैं एक ऐप भी लॉन्च करने वाला था.’ जस्टिस जे बी पारदीवाला ने कहा, ‘भारत एक अजीब देश है. आप एक खिलाड़ी हैं. आप खेलना चाहते हैं. यह आपकी आय का एकमात्र स्रोत है और इसलिए आप कार्यवाही में शामिल होना चाहते हैं.’

वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता कंपनियों द्वारा आयोजित ऑनलाइन टूर्नामेंट में भाग लेता है और वह भागीदारी शुल्क भी देता है. पीठ ने कहा कि उनकी याचिका को भी लंबित याचिकाओं के साथ संलग्न किया जाए. शीर्ष अदालत ऑनलाइन गेमिंग कानून को चुनौती देने वाली विभिन्न स्थानांतरित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

पीठ ने कहा कि एक अलग याचिका, जिसमें सरकार को ऑनलाइन जुआ और सट्टेबाजी मंचों पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया था और जो कथित तौर पर सामाजिक और ई-स्पोर्ट्स गेम की आड़ में संचालित होते हैं, उनपर भी 26 नवंबर को सुनवाई की जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ‘सेंटर फॉर अकाउंटेबिलिटी एंड सिस्टमिक चेंज’ (CASC) और शौर्य तिवारी द्वारा दायर याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा था. याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह अधिनियम न्यायिक रूप से मान्यता प्राप्त कौशल-आधारित खेलों पर भी पूर्ण प्रतिबंध लगाता है, जो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) का उल्लंघन है, यह धारा किसी भी पेशे को अपनाने या वैध व्यापार करने के अधिकार की गारंटी देता है. कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अन्य संबंधित याचिका पर नोटिस जारी किया था.



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