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केरल में PM श्री स्कूल योजना को लेकर आपस में ही भिड़े वाम दल, भाकपा ने माकपा पर लगाए आरोप



केरल के सामान्य शिक्षा विभाग की ओर से केंद्र सरकार के साथ पीएम श्री स्कूल योजना में शामिल होने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद प्रदेश में सत्तारूढ़ माकपा नेतृत्व वाले वाम मोर्चे में मतभेद उभर आए हैं. इस कदम की वाम मोर्चे की प्रमुख सहयोगी पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने कड़ी आलोचना की है.

शिक्षा विभाग की ओर से केंद्र सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के एक दिन बाद, भाकपा के सांसद पी. संतोष कुमार ने कहा कि यह कदम खुद अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है. उन्होंने यह भी कहा कि जिन लोगों ने समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, उन्हें ही इसका जवाब देना चाहिए. मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि इस मामले पर माकपा नेता एम. ए. बेबी को विस्तृत स्पष्टीकरण देना चाहिए.

कैसे शुरू हुआ विवाद?

यह विवाद तब शुरू हुआ जब वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार ने इस मुद्दे को राज्य मंत्रिमंडल के सामने रखे बिना ही केंद्र की इस योजना को आगे बढ़ाने का फैसला किया. भाकपा (जिसने पहले दो बार सरकार को पीछे हटने पर मजबूर किया था) ने अपने वरिष्ठ सहयोगी माकपा पर गठबंधन सहयोगियों को ‘दरकिनार’ करने का आरोप लगाया.

महीनों की हिचकिचाहट के बाद, मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के नेतृत्व वाली सरकार ने भाकपा की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए, पीएम श्री (प्रधानमंत्री स्कूल्स फॉर राइजिंग इंडिया) परियोजना पर हस्ताक्षर करने का फैसला किया.

बोर्ड लगाने की अनिवार्यता से नेताओं में बेचैनी

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) ढांचे के तहत इस योजना का उद्देश्य प्रत्येक ब्लॉक के दो स्कूलों में केंद्रीय वित्त पोषण से बुनियादी ढांचे को उन्नत करना है, जिसके लिए पांच वर्षों तक प्रत्येक स्कूल के लिए लगभग एक करोड़ रुपये प्रति वर्ष का प्रावधान है. भाकपा ने चेतावनी दी है कि इस कदम से केरल में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के कार्यान्वयन का रास्ता साफ हो सकता है, जिसका वामपंथी लंबे समय से विरोध करते रहे हैं.

संस्थानों को पीएम श्री स्कूल के रूप में चिह्नित करने वाले बोर्ड लगाने की अनिवार्यता ने भी पार्टी नेताओं में बेचैनी पैदा कर दी है. स्थानीय और विधानसभा चुनावों के नजदीक आने के साथ, इस विवाद ने केरल के सत्तारूढ़ वामपंथी गठबंधन में नई दरार को पैदा कर दी है, जिससे मोर्चे के भीतर एकजुटता पर सवाल उठ रहे हैं.

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