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‘नेहरू-गांधी परिवार…’, बिहार चुनाव के बीच शशि थरूर ने वंशवाद को बताया गंभीर खतरा, बीजेपी को मिला नया मुद्दा



कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने वंशवादी राजनीति को भारतीय लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा बताया है. उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि भारत वंशवाद की जगह योग्यता को अपनाए. कांग्रेस सांसद ने कहा कि जब राजनीतिक सत्ता का निर्धारण योग्यता, प्रतिबद्धता या जमीनी स्तर पर जुड़ाव के बजाय वंशवाद से होता है तो शासन की गुणवत्ता प्रभावित होती है.

‘राजनीतिक परिदृश्य में वंशवाद का बोलबाला’

अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठन ‘प्रोजेक्ट सिंडिकेट’ के लिए लिखे एक लेख में तिरुवनंतपुरम के सांसद ने बताया कि नेहरू-गांधी परिवार कांग्रेस से जुड़ा हुआ है, लेकिन राजनीतिक परिदृश्य में वंशवाद का बोलबाला है. शशि थरूर का यह बयान भारत-पाकिस्तान संघर्ष और पहलगाम हमले के बाद राजनयिक प्रयासों पर उनकी टिप्पणियों को लेकर उठे विवाद के कुछ सप्ताह बाद आया है. उस समय उनकी टिप्पणियां कांग्रेस के रुख से अलग थीं और कई पार्टी नेताओं ने उनकी मंशा पर सवाल उठाते हुए उन पर निशाना साधा था.

‘नेहरू-गांधी परिवार को लेकर क्या बोले थरूर

‘इंडियन पॉलिटिक्स आर ए फेमिली बिजनेस’ शीर्षक वाले लेख में थरूर ने कहा कि दशकों से एक परिवार भारतीय राजनीति पर हावी रहा है और नेहरू-गांधी परिवार का प्रभाव भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास से जुड़ा हुआ है. उन्होंने कहा, “यह विचार पुख्ता हुआ है कि राजनीतिक नेतृत्व एक जन्मसिद्ध अधिकार हो सकता है. यह विचार भारतीय राजनीति में हर पार्टी, हर क्षेत्र और हर स्तर पर व्याप्त है.’’

उन्होंने कहा कि बीजू पटनायक के निधन के बाद उनके बेटे नवीन ने अपने पिता की खाली लोकसभा सीट जीती. थरूर ने कहा कि महाराष्ट्र में शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने यह पद अपने बेटे उद्धव को सौंप दिया और अब उद्धव के बेटे आदित्य भी प्रतीक्षारत हैं.

उन्होंने राजनीतिक वंशवाद का उदाहरण देते हुए कहा, “यही बात समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव पर भी लागू होती है, जो उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं और जिनके बेटे अखिलेश यादव बाद में उसी पद पर रहे. अखिलेश अब सांसद और पार्टी के अध्यक्ष हैं. बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान के बाद उनके बेटे चिराग पासवान ने पार्टी की कमान संभाली.”

दूसरे राज्यों में भी वंशवादी राजनीति का बोलबाला

उन्होंने जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना, पंजाब और तमिलनाडु में भी वंशवादी राजनीति की मिसालें दीं. सांसद शशि थरूर ने यह भी तर्क दिया कि यह (वंशवादी राजनीति) केवल कुछ प्रमुख परिवारों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ग्राम सभाओं से लेकर संसद तक, भारतीय शासन के ताने-बाने में गहराई से समाई हुई है.

उन्होंने पाकिस्तान में भुट्टो और शरीफ परिवार, बांग्लादेश में शेख और जिया परिवार और श्रीलंका में भंडारनायके और राजपक्षे परिवार का उदाहरण देते हुए कहा, ‘‘सच कहूं तो इस तरह की वंशवादी राजनीति पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित है.”

थरूर ने कहा, “ये भारत के जीवंत लोकतंत्र के साथ खास तौर पर बेमेल लगते हैं. फिर भारत ने वंशवादी मॉडल को इतनी पूरी तरह क्यों अपनाया है? एक कारण यह हो सकता है कि एक परिवार एक ब्रांड के रूप में प्रभावी रूप से काम कर सकता है. अगर मतदाता किसी उम्मीदवार के पिता, चाची या भाई-बहन को स्वीकार करते हैं, तो वे शायद उम्मीदवार को स्वीकार कर लेंगे- विश्वसनीयता बनाने की कोई जरूरत नहीं है.’’

‘वंशवादी राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा’

थरूर ने इस बात पर जोर दिया कि वंशवादी राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है. उन्होंने कहा, ‘‘जब राजनीतिक सत्ता का निर्धारण योग्यता, प्रतिबद्धता या जमीनी स्तर पर जुड़ाव के बजाय वंश से होता है तो शासन की गुणवत्ता प्रभावित होती है.’’

कांग्रेस सांसद शशि थरूर के लेख की सराहना करते हुए बीजेपी नेता शहजाद पूनावाला ने कहा, “शशि थरूर ने बताया कि कैसे भारतीय राजनीति एक पारिवारिक व्यवसाय बन गई है. उन्होंने बताया है कि कैसे कांग्रेस पार्टी का पहला परिवार गांधी-वाड्रा वंश इस नकारात्मक विचार को मजबूत करने के लिए जिम्मेदार है कि राजनीतिक पद और शक्ति जन्मसिद्ध अधिकार का मामला हो सकता है. तेजस्वी यादव और राहुल गांधी उनके लेख को बहुत व्यक्तिगत रूप से ले सकते हैं.”



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