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न्यायमूर्ति सूर्यकांत बनेंगे भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश, केंद्र सरकार ने शुरू की नियुक्ति प्रक्रिया



केंद्र सरकार ने भारत के अगले प्रधान न्यायाधीश (CJI) की नियुक्ति की प्रक्रिया गुरुवार (23 अक्टूबर, 2025) को शुरू कर दी. सूत्रों ने यह जानकारी दी. वर्तमान प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई अगले महीने 23 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया से वाकिफ लोगों ने पीटीआई-भाषा को बताया कि न्यायमूर्ति गवई को उनके उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश करने के लिए कहने से संबंधित पत्र गुरुवार (23 अक्टूबर, 2025) की शाम या शुक्रवार (24 अक्टूबर, 2025) तक मिल जाएगा.

केंद्रीय कानून मंत्री वर्तमान CJI से मांगेंगे सिफारिश

प्रक्रिया ज्ञापन के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति, स्थानांतरण और पदोन्नति के नियम निर्धारित करने वाले दस्तावेजों में कहा गया है कि भारत के प्रधान न्यायाधीश के पद पर शीर्ष अदालत के वरिष्ठतम न्यायाधीश की नियुक्ति होनी चाहिए, जिन्हें पद धारण करने के लिए उपयुक्त समझा जाए.

ज्ञापन के अनुसार, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भारत के प्रधान न्यायाधीश से उनके उत्तराधिकारी की नियुक्ति के लिए उचित समय पर सिफारिश मांगेंगे. सीजेआई 65 साल की उम्र में सेवानिवृत्त होते हैं और उनके उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश मांगने वाला पत्र परंपरागत रूप से इससे एक महीने पहले भेजा जाता है.

पदभार ग्रहण करने के बाद 15 महीने के लिए पद पर रहेंगे न्यायमूर्ति सूर्यकांत

न्यायमूर्ति सूर्यकांत न्यायमूर्ति गवई के बाद सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं और भारतीय न्यायपालिका के अगले प्रमुख बनने की कतार में पहले पायदान पर हैं. हरियाणा के हिसार जिले में 10 फरवरी, 1962 को एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे न्यायमूर्ति सूर्यकांत 24, मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने. न्यायमूर्ति सूर्यकांत के नाम की सिफारिश को मंजूरी मिलने के बाद वह 24 नवंबर को प्रधान न्यायाधीश का कार्यभार ग्रहण करेंगे और 9 फरवरी, 2027 तक लगभग 15 महीने के लिए इस पद पर रहेंगे.

कई ऐतिहासिक फैसले सुनाने वाली पीठ का हिस्सा रह चुके हैं न्यायमूर्ति सूर्यकांत

न्यायमूर्ति सूर्यकांत बतौर न्यायाधीश दो दशक से अधिक लंबा अनुभव लेकर सुप्रीम कोर्ट में आए. वह अनुच्छेद-370, अभिव्यक्ति की आजादी, लोकतंत्र, भ्रष्टाचार, पर्यावरण और लैंगिक समानता से जुड़े ऐतिहासिक फैसले सुनाने वाली पीठ का हिस्सा रह चुके हैं. न्यायमूर्ति सूर्यकांत उस पीठ में भी शामिल थे, जिसने औपनिवेशिक युग के राजद्रोह कानून को स्थगित किया और निर्देश दिया कि सरकार की समीक्षा तक इसके तहत कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाएगी.

उन्होंने चुनाव आयोग से बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान हटाए गए 65 लाख मतदाताओं का ब्योरा सार्वजनिक करने को कहा, जिससे चुनावों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए उनकी प्रतिबद्धता प्रदर्शित हुई.

न्यायमूर्ति सूर्यकांत उस पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2022 की पंजाब यात्रा के दौरान सुरक्षा उल्लंघन की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा ​​की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति गठित की थी. उन्होंने कहा था कि ऐसे मामलों की जांच के लिए न्यायिक रूप से प्रशिक्षित दिमाग की जरूरत होती है.

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने रक्षा बलों के लिए वन रैंक-वन पेंशन (OROP) योजना को संवैधानिक रूप से वैध बताते हुए बरकरार रखा. वह सशस्त्र बलों में स्थायी कमीशन में महिला अधिकारियों के लिए समानता के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे हैं.

इसके अलावा, न्यायमूर्ति सूर्यकांत 7 न्यायाधीशों की उस पीठ में भी शामिल थे, जिसने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) से जुड़े 1967 के फैसले को खारिज कर दिया था, जिससे संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे पर पुनर्विचार का रास्ता खुल गया था. इसके साथ ही वह पेगासस स्पाइवेयर से जुड़े मामले की सुनवाई करने वाली पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने अवैध निगरानी के आरोपों की जांच के लिए साइबर विशेषज्ञों का एक पैनल नियुक्त किया था और कहा था कि राज्य को राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में मुफ्त पास नहीं मिल सकता है.

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