पुरुषों के लिए 6 और महिलाओं के लिए सिर्फ 3 सीट… सेना की भर्ती पर भड़का सुप्रीम कोर्ट, बोला- लिंग के आधार पर सेलेक्शन नहीं…

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय सेना की जज एडवोकेट जनरल (JAG) ब्रांच में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग सीटें आरक्षित करने की नीति पर नाराजगी जताई है. कोर्ट ने सोमवार (11 अगस्त, 2025) को इसे असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि लैंगिक तटस्थता का मतलब ये है कि योग्य उम्मीदवारों का सेलेक्शन योग्यता के आधार पर होना चाहिए, न कि लिंग के आधार पर.
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने कहा कि कार्यपालिका पुरुषों के लिए सीट रिजर्व नहीं कर सकती है. उन्होंने कहा कि पुरुषों के लिए 6 और महिलाओं के लिए तीन सीटें तय करना मनमाना है और भर्ती की आड़ में इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है.
कोर्ट ने कहा कि एक बार सेना ने सेना अधिनियम-1950 की धारा-12 के तहत महिलाओं को किसी शाखा में शामिल होने की अनुमति दे दी, तो वह कार्यकारी नीति के माध्यम से उनकी संख्या पर अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगा सकती.
बेंच ने कहा, ‘अगर महिला अभ्यर्थी जेएजी प्रवेश परीक्षा में पुरुषों से अधिक अंक हासिल करती हैं, तो उन्हें योग्यता के आधार पर मौका दिया जाना चाहिए. बेहतर प्रदर्शन के बावजूद उन्हें 50 प्रतिशत सीट तक सीमित रखना समानता के अधिकार का उल्लंघन है.‘
सेना अधिनियम की धारा-12 में भर्ती या रोजगार के लिए महिलाओं को अयोग्य ठहराए जाने के प्रावधानों के बारे में बताया गया है. इसमें कहा गया है, ‘कोई भी महिला नियमित सेना में भर्ती या रोजगार के लिए पात्र नहीं होगी, सिवाय ऐसे कोर, विभाग, शाखा या अन्य निकाय के जो नियमित सेना का हिस्सा हों या उसके किसी भाग से संबद्ध हों, जिन्हें केंद्र सरकार आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना के जरिए इस संबंध में निर्दिष्ट करे.‘
इस फैसले में भारत सरकार की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नीतियों के अलावा उस संवैधानिक व्यवस्था को भी रेखांकित किया गया है, जिसके तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि महिलाओं के साथ किसी भी तरह का भेदभाव न हो और अधिक समावेशी समाज का निर्माण करके सभी क्षेत्रों में उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाया जा सके.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 31वें शॉर्ट सर्विस कमीशन जेएजी पाठ्यक्रम में पुरुषों के लिए छह और महिलाओं के लिए केवल तीन सीटें निर्धारित करने संबंधी मौजूदा अधिसूचना संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के अलावा सेना अधिनियम की धारा-12 का उल्लंघन है.
अनुच्छेद 14, 15 और 16 समानता के अधिकार की गारंटी देते हैं. बेंच ने कहा कि कार्यपालिका किसी नीति या प्रशासनिक निर्देश के माध्यम से प्रवेश की सीमा की आड़ में उनकी (महिलाओं की) संख्या को सीमित नहीं कर सकती या पुरुष अधिकारियों के लिए आरक्षण नहीं दे सकती.
बेंच ने इस प्रश्न पर विचार के दौरान यह आदेश पारित किया कि क्या सेना किसी नीति या प्रशासनिक निर्देश के माध्यम से किसी विशेष शाखा में महिलाओं की भर्ती के दौरान महिला उम्मीदवारों की संख्या को सीमित करती है.