‘मंदिर जाने से रोका, ईसाई धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए किया मजबूर’, जबरन धर्मांतरण के मामले में सुप्रीम कोर्ट में बोला युवक
अनुसूचित जाति समुदाय के 19-वर्षीय एक युवत ने धर्मांतरण के मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में पक्षकार बनाए जाने का आग्रह किया है. अभिषेक खटीक की याचिका में दावा किया गया है कि वह मध्य प्रदेश के एक आश्रय गृह में जबरन और धोखाधड़ी से धर्मांतरण का शिकार हुए हैं. उन्होंने आरोप लगाया उन्हें ईसाई प्रार्थना में भाग लेने के लिए मजबूर किया गया, मंदिरों में जाने से रोका गया. उन पर इसके लिए मेंटली और धार्मिक प्रभाव डाला गया.
एडवोकेट अश्विनी दुबे के जरिए दायर याचिका में कहा गया है कि उनकी वर्तमान अर्जी राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो की ओर से आशा किरण होम, झिंझरी में किए गए औचक निरीक्षण के बाद मध्य प्रदेश के कटनी के माधव नगर स्थित एक पुलिस थाने में दर्ज प्राथमिकी पर आधारित है.
याचिका में दावा किया गया है कि निरीक्षण के दौरान, अभिषेक खटीक सहित चार बच्चों के बयान दर्ज किए गए, जिसमें बाल संरक्षण मानदंडों के गंभीर उल्लंघन और जबरदस्ती धर्मांतरण के मामलों का खुलासा हुआ.
याचिका में दावा किया गया है कि बच्चों ने बताया कि उन्हें हिंदू होने के बावजूद ईसाई प्रार्थनाओं में भाग लेने के लिए मजबूर किया जाता था, मंदिरों में जाने से रोका जाता था और उक्त बाल गृह के प्रबंधन के जरिए उन पर मनोवैज्ञानिक और धार्मिक दबाव डाला जाता था.
याचिका में कहा गया, ‘आवेदक अनुसूचित जाति हिंदू समुदाय से संबंधित है और मध्य प्रदेश का निवासी है. वह जबरदस्ती और धोखाधड़ी से धर्मांतरण का शिकार रहा है और उसका मामला उसी कुकृत्य से जुड़ा है, जिसका समाधान विवादित कानून में किया गया है.’
याचिका में कहा गया, ‘इस मामले में उन्हें शामिल करने का उद्देश्य विवाद को बढ़ाना नहीं, बल्कि पीड़ित के लिए एक प्रामाणिक और संवैधानिक रूप से प्रासंगिक परिप्रेक्ष्य प्रदान करना है, जिसके अधिकारों की रक्षा के लिए ये कानून बनाए गए हैं.’
सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में कई राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं से कहा था कि वे इससे संबंधित मामलों को हाईकोर्ट्स से सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने के लिए एक साझा याचिका दायर करें.
सुप्रीम कोर्ट ने रेखांकित किया था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष कम से कम पांच, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के समक्ष सात, गुजरात और झारखंड हाईकोर्ट्, के समक्ष दो-दो, हिमाचल प्रदेश के समक्ष तीन और कर्नाटक और उत्तराखंड हाईकोर्ट्स के समक्ष एक-एक ऐसी याचिकाएं लंबित हैं.
गुजरात और मध्य प्रदेश राज्यों की ओर से भी दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें धर्मांतरण संबंधी उनके कानूनों के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने वाले संबंधित हाईकोर्ट्स के अंतरिम आदेशों को चुनौती दी गई हैं.
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के धर्मांतरण विरोधी कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और दलील दी कि ये अंतरधार्मिक जोड़ों को परेशान करने और उन्हें आपराधिक मामलों में फंसाने के लिए बनाए गए हैं.

