राजनीतिक दलों की वेबसाइट पर उनकी नियमावली के प्रकाशन को अनिवार्य बनाने की मांग, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक पार्टियों की वेबसाइट पर उनकी नियमावली के प्रकाशन की मांग को अहम बताया है. कोर्ट ने इस पर चुनाव आयोग से वेब मांगा है. याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि इससे लोगों को पता चल सकेगा कि पार्टी अपने ही बनाए गए नियमों के मुताबिक काम कर रही है या नहीं.
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने यह मांग भी की है कि अपने मेमोरेंडम और रूल्स के मुताबिक काम न करने वाली पार्टियों पर चुनाव आयोग को कार्रवाई करनी चाहिए. उपाध्याय ने यह आवेदन अपनी पहले से लंबित याचिका में दाखिल किया है. उस याचिका में राजनीतिक पार्टियों के रजिस्ट्रेशन के नियम तय करने की मांग पर की गई है. मूल याचिका पर कोर्ट ने 12 सितंबर को नोटिस जारी किया था.
सोमवार, 3 नवंबर को हुई संक्षिप्त सुनवाई में जस्टिस सूर्य कांत ने उपाध्याय के नए आवेदन में की गई मांग को ‘सार्थक’ बताया. जस्टिस कांत ने कहा कि अगर कोई बड़ी कानूनी अड़चन नहीं आई, तो कोर्ट इस मांग पर निर्देश जारी करेगा.
नए आवेदन में रखी गई मांग :-
- कोर्ट चुनाव आयोग से यह सुनिश्चित करने को कहे कि हर पार्टी अपने मेमोरेंडम, रूल्स और रेग्युलेशन अपनी वेबसाइट के होम पेज पर प्रकाशित करे.
- चुनाव आयोग यह सुनिश्चित करे कि हर पार्टी अपनी नियमावली का पूरी तरह पालन करे. पार्टियों के रजिस्ट्रेशन से जुड़ी जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29A का पूरी तरह पालन हो.
- चुनाव आयोग से यह कहा जाए कि वह राजनीतिक पार्टियों को राजनीतिक पार्टियों के चंदा ग्रहण करने से जुड़ी धाराएं 29B और 29C के पालन के लिए कहे. ऐसा न करने वाली पार्टी पर कार्रवाई हो.
12 सितंबर को क्या हुआ था?
12 सितंबर को मुख्य मामले की सुनवाई हुई थी. उस दिन कभी चुनाव न लड़ कर भी करोड़ों का चंदा लेने वाली पार्टियों का मामला कोर्ट में उठा था. याचिकाकर्ता ने बताया था कि राजनीतिक दलों के लिए कोई नियम-कानून नहीं हैं इसलिए, कई ऐसी पार्टियां बनती हैं जो कभी चुनाव नहीं लड़तीं. ऐसी पार्टियां चंदा इकट्ठा करने, काले धन को सफेद करने, धौंस जमाने जैसी बातों के लिए इस्तेमाल होती हैं. आपराधिक और अलगाववादी इतिहास वाले लोग भी बेरोकटोक पार्टी बना लेते हैं.
याचिकाकर्ता की दलीलें सुनने के बाद राजनीतिक दलों के रजिस्ट्रेशन और नियमन का पैमाना तय करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया था. कोर्ट ने कहा था कि उसे इस मामले में राजनीतिक दलों को भी सुनना होगा इसलिए, याचिकाकर्ता उन्हें भी पक्ष बनाए.

