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Bihar Elections 2025: बिहार कांग्रेस में विरासत की राजनीति तेज! टिकट के लिए बाप-बेटे की जोड़ियां एक्टिव



आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियों में टिकट बंटवारे को लेकर लगातार बैठकें चल रही हैं. हर स्तर के नेता और कार्यकर्ता अपने लिए टिकट की तलाश में जुटे हुए हैं. वहीं कांग्रेस पार्टी की बात करें तो कुछ नेता ऐसे भी हैं जो अपने लिए नहीं बल्कि अपने बेटे के लिए टिकट पाने की हर संभव कोशिश में लगे हैं.  

हाल ही में दिल्ली में वरिष्ठ कांग्रेस नेता अजय माकन की अध्यक्षता में बिहार कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमिटी की बैठक आयोजित हुई थी. इस बैठक में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए टिकट वितरण को लेकर गंभीर चर्चा हुई, लेकिन सूत्रों की मानें तो इस बार फोकस सिर्फ जीतने वाले प्रत्याशियों पर नहीं, बल्कि ‘नेता पुत्रों’ की ‘लॉन्चिंग’ पर भी रहा.

बेटे को मैदान में उतारना चाहते हैं अखिलेश सिंह

कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता अपने-अपने बेटों को राजनीति में स्थापित करने के प्रयास में जुटे हैं. दिलचस्प बात यह है कि ये सभी नेता एक-दूसरे के पुत्रों को टिकट दिलाने में आपसी सहयोग और समन्वय की नीति भी अपना रहे हैं. कांग्रेस के इन नेताओं का जिक्र करें तो सूत्रों के मुताबिक राज्यसभा सांसद और कांग्रेस के वरिष्ठ कांग्रेस नेता अखिलेश प्रसाद सिंह अपने बेटे को हर हाल में चुनाव मैदान में उतारना चाहते हैं. 

बेटे के टिकट के लिए मदन मोहन झा भी लाइन में

सूत्र बताते हैं कि वे तब तक प्रयासरत रहेंगे जब तक उनके बेटे को एमपी या एमएलए की सीट नहीं मिल जाती चाहे टिकट कांग्रेस से मिले या किसी और दल से मिले. बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान में विधान परिषद में पार्टी नेता मदन मोहन झा भी अपने बेटे को चुनावी राजनीति में उतारने की तैयारी कर चुके हैं.

बेटे को मैदान में उतारना चाहती हैं मीरा कुमार

पूर्व लोकसभा स्पीकर और कांग्रेस की कद्दावर दलित नेता मीरा कुमार अपने बेटे को दोबारा चुनावी मैदान में उतारना चाहती हैं. पहले लोकसभा चुनाव हार चुके बेटे को अब विधानसभा चुनाव में टिकट दिलाकर राजनीतिक ‘रीलॉन्च’ की योजना पर काम चल रहा है.

बेटे को विरासत सौंपना चाहते हैं शकील अहमद खान

पूर्व केंद्रीय मंत्री और बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष शकील अहमद लंबे समय से सक्रिय राजनीति से दूर हैं, लेकिन अब अपने बेटे को टिकट दिलाकर सियासी विरासत सौंपना चाहते हैं. इसके लिए विदेश में रह रहे बेटे को उन्होंने देश बुलाकर जमीनी स्तर पर सक्रिय कर दिया है. वहीं वजीरगंज से छह बार के विधायक और पूर्व मंत्री अवधेश सिंह भी इस बार खुद की जगह बेटे को टिकट दिलाने की कोशिश में लगे हैं. 

सूत्रों के मुताबिक, स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में इन नामों पर चर्चा हुई. यह भी बताया जा रहा है कि जिन नेता पुत्रों के नाम सामने आए हैं, उनके पीछे न सिर्फ पिता की राजनीतिक विरासत है, बल्कि आपसी समर्थन और रणनीतिक समझदारी भी है. 

कांग्रेस में पिता की जगह पुत्र को टिकट पहले भी मिलती रही है. यही वजह है कि बीजेपी हमेशा से कांग्रेस पर परिवारवाद की राजनीति को लेकर निशाना साधती रही है. ऐसे में अब देखना ये होगा कि कांग्रेस आलाकमान इस पारिवारिक टिकट राजनीति को कितना तवज्जो देता है और क्या जमीनी कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर नेता पुत्रों को पार्टी में तरजीह दी जाती है या नहीं?



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