Exclusive: वोट चोरी के राहुल गांधी के आरोप क्यों बेबुनियाद हैं ? क्या कहता है रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट कानून
कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार मतदाता सूची में गड़बड़ी और चुनाव प्रक्रिया को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं. चुनाव आयोग (ECI) के इशारे पर वोट चोरी के आरोप लगा रहे हैं. चुनाव आयोग अधिकारिक तौर पर पहले ही राहुल गांधी के आरोपों को बेबुनियाद करार दे चुका है, लेकिन अब चुनाव आयोग के सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक राहुल गांधी द्वारा लगाए जा रहे आरोप बेबुनियाद तो हैं ही साथ ही रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट (RPA) में प्रावधानों यानी कानून की खुलेआम अनदेखी हैं.
ऐसे में ये सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या राहुल गांधी जानबूझकर कानून की अनदेखी कर बेबुनियाद आरोप लगा रहें हैं. चुनाव आयोग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक कानून में साफ तौर पर लिखा है कि अगर किसी भी व्यक्ति या राजनीतिक दल को मतदाता सूची को लेकर कोई आपत्ति है तो उसे सबसे पहले स्थानीय स्तर पर एसडीएम (SDM) और उसके बाद अपील के तौर पर डीएम (DM) के पास शिकायत दर्ज करानी होती है.
चुनावी नतीजों को लेकर कितने दिनों में कर सकते हैं शिकायत
वोटर लिस्ट संशोधन का सीधे तौर पर केंद्रीय चुनाव आयोग से कोई लेना-देना नहीं है. यहां तक कि अगर आयोग को कोई शिकायत मिलती भी है तो उसे स्थानीय स्तर पर ही संबंधित अधिकारी को भेजा जाता है. कानून में यह भी प्रावधान है कि यदि किसी व्यक्ति को चुनावी नतीजों या मतदाता सूची को लेकर आपत्ति है तो वह चुनावी नतीजे के 45 दिन के भीतर हाई कोर्ट में चुनाव याचिका (Election Petition) दाखिल कर सकता है.
दो साल पुरानी वोटर लिस्ट में गड़बड़ी साबित करना संभव नहीं
इस अवधि के बाद न तो ईवीएम (EVM) और न ही मतदान से जुड़ा डाटा सुरक्षित रखा जाता है. कोर्ट की अनुमति मिलने पर ही वोटिंग मशीनों और मतदाता सूची की जानकारी संरक्षित की जाती है. चुनाव आयोग से जुड़े सूत्रों ने यह भी साफ किया है कि मतदाता सूची का updation एक निरंतर प्रक्रिया है. इसलिए अगर कोई यह दावा करता है कि दो साल पुरानी वोटर लिस्ट में गड़बड़ी थी तो उसे साबित करना संभव नहीं है, क्योंकि हर चुनाव के बाद नई वोटर लिस्ट बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.
‘ऐसे तो कोई भी सवाल उठा देगा’
जानकारों का कहना है कि जिस तरह से राहुल गांधी ने आरोप लगाए हैं, उस आधार पर तो कोई भी व्यक्ति कभी भी किसी भी चुनाव की प्रक्रिया और परिणाम पर सवाल उठा सकता है, जबकि चुनावी नियमों में साफ तौर पर समय सीमा और अधिकार क्षेत्र तय किया गया है, ताकि चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर अनावश्यक सवाल न उठ सकें.
कुल मिलाकर, आयोग और विशेषज्ञों का मानना है कि जिस मतदाता सूची के आधार पर चुनाव कराए जाते हैं, उसकी प्रति अधिसूचना जारी होने के बाद सभी राजनीतिक दलों को दे दी जाती है. ऐसे में उन्हें पर्याप्त समय और अवसर मिलता है कि वे उस सूची में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी को लेकर अपनी आपत्ति दर्ज करवा सकें. इसलिए चुनाव के बाद लगाए गए आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं रह जाता.
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