EXPLAINED: क्या बीजेपी के लिए पाकिस्तान, लादेन और मुगल का नाम लिए बिना चुनाव जीतना नामुमकिन, इन्हीं मुद्दों पर राजनीति क्यों?
‘पहलगाम में आतंकियों ने हमला किया. इसके 20 दिन के अंदर ही पाकिस्तान में घुसकर ऑपरेशन सिंदूर किया. पाकिस्तान ने फिर हिम्मत की तो गोली का जवाब तोप के गोले से देंगे. बिहार के कारखाने में बने तोप के गोले से पाकिस्तानियों को सबक सिखाएंगे.’
4 नवंबर को बिहार के बेतिया में गृह मंत्री अमित शाह ने सभा में यह लफ्ज कहे. यह पहली बार नहीं है जब चुनावी रैलियों में पाकिस्तान या मुसलमानों को टारगेट करके वोट मांगा गया. पाकिस्तान में आंतकवाद पनपा, जो सच है. लेकिन बीजेपी हमेशा इसी के सहारे वोट मांगती है और चुनाव जीत भी जाती है. मानो, बिना मुसलमान, औरंगजेब, मुगल या पाकिस्तान के बीजेपी को वोट ही नहीं मिलेंगे.
तो आइए ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि बीजेपी का सॉफ्ट टारगेट मुसलमान-पाकिस्तान क्यों है, क्या इन मुद्दों के बिना कमल नहीं खिलेगा और बिहार चुनाव में इसका कितना असर होगा…
सवाल 1- बिहार की चुनावी रैलियों में बीजेपी ने कैसे मुसलमान, पाकिस्तान और मुगलों का मुद्दा उठाया?
जवाब- बिहार 2025 चुनावों में बीजेपी का फोकस सुरक्षा और पहचान पर रहा है, जहां पाकिस्तान ‘आतंक का प्रतीक’ बना, मुसलमान ‘घुसपैठिए’ और मुगल ‘ऐतिहासिक दुश्मन’.
- 4 नवंबर को बेतिया में चुनावी सभा के दौरान अमित शाह ने कहा, ‘कुछ दिन पहले राहुल गांधी ने यहां यात्रा की थी. ये यात्रा घुसपैठियों को बचाने के लिए थी. उन्हें जितनी भी कोशिश करनी है कर लें, लेकिन एक-एक घुसपैठिए को हम बाहर निकाल कर रहेंगे.’
- 3 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के कटिहार में चुनावी सभा की. पीएम मोदी ने कहा, ‘कांग्रेस हो या राजद,इनको सिर्फ घुसपैठियों से लगाव है. ये लोग घुसपैठियों को बचाने के लिए राजनीतिक यात्राएं करते हैं. मुझे बताएं कि बिहार का भविष्य आप तय करेंगे या घुसपैठिए तय करेंगे. ये घुसपैठिए आपकी संपत्ति पर कब्जा कर रहे हैं, आपके संसाधनों पर अपना हक जमा रहे हैं. बिहार को घुसपैठियों से बचाना है. इन घुसपैठियों को हटाने के लिए हम काम कर रहे हैं.’
- 31 अक्टूबर को केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने बिहार के वैशाली में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘पीएम मोदी पाकिस्तान को 5 घंटे में खत्म कर सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं करते क्योंकि पाकिस्तान के लोग भी कभी भारत का हिस्सा थे.’
- 30 अक्टूबर को पीएम मोदी ने बिहार के मुजफ्फरपुर और छपरा में चुनावी सभा की. उन्होंने कहा, ‘जब पाकिस्तान में विस्फोट हो रहे थे तो पार्टी के ‘शाही परिवार’ की नींद उड़ गई थी. पाकिस्तान और कांग्रेस के नामदार दोनों ही ऑपरेशन सिंदूर से अभी तक उभर नहीं पाए.’
- 21 अक्टूबर को अमित शाह ने सीवान में कहा, ‘राहुल गांधी घुसपैठियों को बचाने के लिए यात्रा निकाल रहे हैं. वे चाहते हैं घुसपैठियों को देश में रहने दिया जाए. अभी तो चुनाव ने SIR के जरिए घुसपैठियों को बाहर किया है. एक बार NDA की सरकार बनवाइए, बीजेपी एक-एक घुसपैठिए को बाहर करेगी.’
- 19 अक्टूबर को बिहार के अरवल में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने चुनावी सभा में मुसलमानों को ‘नमक हराम’ बताया. उन्होंने कहा, ‘मुस्लिम समुदाय के लोग केंद्र सरकार की भी योजनाओं का लाभ लेते हैं, लेकिन वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वोट नहीं देते, जिससे वे उपकार नहीं मानते. ऐसे नमक हरामों की हमें जरूरत नहीं है.’
इतना ही नहीं, 2020 में बिहार में चुनावी रैली में बीजेपी ने मुगलों का सहारा भी लिया था. 28 अक्टूबर 2020 को भागलपुर में चुनावी रैली में अमित शाह ने कहा था, ‘मुगलों ने औरंगजेब के राज में हिंदुओं पर अत्याचार किए. आज राजद जंगलराज चला रहा है, जैसे औरंगजेब की तानाशाही थी. NDA को वोट देकर हिंदू गौरव बचाओ.’
सवाल 2- बीजेपी पाकिस्तान, मुसलमान और मुगलों के मुद्दों को चुनाव में क्यों भुनाती है?
जवाब- बीजेपी की रणनीति का मूल है हिंदुत्व- एक वैचारिक ढांचा जो हिंदू पहचान को राष्ट्रीयता का केंद्र बनाता है. राजनीतिक वैज्ञानिक विनय सीतापती अपनी किताब ‘जुगलबंदी: द बीजेपी बिफोर मोदी’ में लिखते हैं, ‘बीजेपी हिंदुओं को एकजुट करने के लिए इन मुद्दों का इस्तेमाल करती है, क्योंकि हिंदू आबादी करीब 80% है, लेकिन जाति-आधारित विभाजन उन्हें बिखेर देता है. पाकिस्तान को आतंक का स्त्रोत बताकर राष्ट्रीय सुरक्षा का डर पैदा करना, मुसलमानों को घुसपैठिए कहकर अल्पसंख्यक भय को भुनाना और मुगलों को विदेशी अत्याचारी दिखाकर ऐतिहासिक अन्याय की भावना जगाना, ये सब हिंदू वोटबैंक को मजबूत करते हैं.’
ह्यूमन राइट्स वॉच की 2024 की रिपोर्ट ‘इंडिया: हेट स्पीच फ्यूल्ड मोदी’स इलेक्शन कैंपेन’ में लिखा है कि बीजेपी ने 2024 लोकसभा में मुसलमानों को ‘घुसपैठिए’ बातने वाले एनिमेटेड वीडियो शेयर किए, जो 1.6 मिलियन व्यूज पा चुके थे. इनका मकसद विपक्ष को ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ का दोषी ठहराकर हिंदू वोटों को एकजुट करना था.
टाइम मैग्जीन की 2023 की रिपोर्ट ‘हाउ इंडिया’स बीजेपी इज वेपोनाइजिंग हिस्ट्री अगेंस्ट मुस्लिम्स’ में एक्सपर्ट कहते हैं कि मुगलों को खलनायक बनाना बीजेपी का हिंदू राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने का तरीका है. जैसे 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाना, जो मुगल बादशाह बाबर से जोड़ा जाता था.
पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई कहते हैं, ‘बिहार में यह रणनीति और ज्यादा साफ दिखती है. 2020 बिहार चुनाव में बीजेपी ने ’80 बनाम 20’ का नारा दिया यानी 80% हिंदू बनाम 20% मुसलमान. इससे योगी आदित्यनाथ ने यूपी में वोट बटोरे थे. बीजेपी इतिहास को फिर से लिखती है ताकि मुगलों को ‘हिंदू-विरोधी’ दिखाकर मौजूदा मुसलमानों को निशाना बनाया जा सके. यह वोटबैंक पॉलिटिक्स है, जो डर और गुस्से से हिंदू वोट खींचती है.’
सवाल 3- बीजेपी की ध्रुवीकरण वाले मुद्दों पर राजनीति करने का कोई ऐतिहासिक बैकग्राउंड है?
जवाब- बीजेपी की जड़ें 1925 में बनी राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (RSS) में हैं, जो हिंदू राष्ट्रवाद पर टिका है. कार्नेगी एंडॉमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस की 2019 रिपोर्ट ‘द बीजेपी इन पॉवर: इंडियन डेमोक्रेसी एंड रिलिजियस नेशनलिज्म’ के मुताबिक, RSS ने हमेशा मुसलमानों को ‘भारतीयता से अलग’ माना, क्योंकि 1947 बंटवारा उनके लिए ‘हिंदू एकता की हार’ थी. 1980 में बनी बीजेपी ने 1990 के दशक में राम मंदिर आंदोलन से शुरुआत की, जिसमें मुगल बादशाह बाबर की मस्जिद को तोड़कर राम जन्मभूमि बनाई गई.
एशिया टाइम्स की 2024 रिपोर्ट ‘बीजेपी’स एंटी-मुस्लिम रेटोरिक हैज डीप, डार्क हिस्टोरिकल रूट्स’ के मुताबिक, बीजेपी पाकिस्तान को ‘मुस्लिम अलगाववाद’ का प्रतीक मानती है, जो 1940 के मुस्लिम लीग के ‘दो-राष्ट्र सिद्धांत’ से जुड़ा है.
नेशनल हेराल्ड की 2017 रिपोर्ट ‘व्हाई इज द बीजेपी टारगेटिंग द मुगल्स’ में कहा गया कि बीजेपी मुगलों को ‘विदेशी आक्रमणकारी’ बताकर हिंदू गौरव जगाती है, क्योंकि वास्तविक मुद्दे, जैसे बेरोजगारी और गरीबी पर बात करने की बजाय यह आसान है.
‘औरंगजेब: द मैन एंड द मिथ’ किताब लिखने वाली विशेषज्ञ आंद्रे ट्रुश्के के मुताबिक, बीजेपी औरंगजेब को ‘हिंदू-विरोधी’ बनाकर वर्तमान मुसलमानों पर हमला करती है. यह ‘डॉग व्हिसल’ है, जो हेट स्पीच को सिग्नल देता है. प्रोफेसर रामचंद्र गुहा अपनी किताब ‘आफ्टर गांधी’ में लिखते हैं कि 1980-90 के दशक में बीजेपी ने सांप्रदायिक दंगों को वोटों में बदला, जैसे 1992 के बाबरी दंगे.
आज यह सोशल मीडिया पर फैलता है. 2024 में बीजेपी के इंस्टाग्राम पर मुसलमानों को ‘मुस्लिम लीग का वारिस’ बताने वाले वीडियो वायरल हुए. 2020 बिहार चुनाव में बीजेपी ने ‘जंगलराज’ के साथ ‘पाकिस्तानी झंडे’ का जिक्र किया. द प्रिंट की 2025 रिपोर्ट ‘मटन, मुगल, मुस्लिम: मोदी विपक्ष को अन-हिंदू दिखा रहे हैं’ के मुताबिक, बीजेपी विपक्ष को ‘मुगल मानसिकता’ वाला बताकर हिंदू वोटों को एकजुट करती है. यह हमेशा इसलिए क्योंकि विकास के वादे टिकते नहीं, लेकिन डर हमेशा काम करता है.
सवाल 4- क्या बीजेपी मुसलमानों को पूरी तरह नजरअंदाज करती है या कोई सॉफ्ट स्ट्रैटजी है?
जवाब- नहीं. बीजेपी ‘पसमांदा’ यानी OBC मुसलमानों को टारगेट नहीं करती है. 2019 में बीजेपी ने 27 मुस्लिम सांसदों में से 3 पसमांदा को जिताया. द डिप्लोमैट की 22 नवंबर 2022 रिपोर्ट ‘हाउ एंड व्हाई, द बीजेपी समटाइम्स कोर्ट्स मुस्लिम वोटर्स’ के मुताबिक, यूपी में बीजेपी पसमांदा को ‘सामाजिक न्याय’ के नाम पर लुभाती है. लेकिन कुल मिलाकर इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट 2024 ‘व्हाई इज द बीजेपी शाइज अवे फ्रॉम फील्डिंग मुस्लिम कैंडिडेट्स’ के मुताबिक, बीजेपी मुस्लिम उम्मीदवार कम उतारती है, क्योंकि जीतने की संभावना कम होती है.
scroll.in की 14 दिसंबर 2023 रिपोर्ट ‘द बीजेपी एंड द मुस्लिम वोटर’ के मुताबिक बीजेपी सूफी और पसमांदा को ‘इनक्लूसिविटी’ दिखाती है, लेकिन हिंदुत्व को कभी नहीं छोड़ी.
सवाल 5- क्या इससे बीजेपी को फायदा होता है, अगर हां तो कितना?
जवाब- हां. 2020 बिहार चुनावों में बीजेपी-एनडीए ने 43.17% वोट शेयर के साथ 125 सीटें जीतीं थीं, जबकि महागठबंधन को 38.75% वोट शेयर के साथ 110 सीटें मिलीं. अल जजीरा के मुताबिक, सीमांचल जैसे मुस्लिम इलाकों में ध्रुवीकरण से बीजेपी को 4/18 सीटें मिलीं. 2025 में अभी वोटिंग बाकी है, लेकिन घुसपैठिए का मुद्दा फैल रहा है और बिहार में काम कर रहा है. गिरिराज सिंह की हिंदू स्वाभिमान यात्रा से पोलराइजेशन बढ़ा है.
रशीद किदवई कहते हैं, 80-20 विभाजन से बीजेपी को फायदा होता है. लेकिन कुछ सीमाएं भी हैं क्योंकि इससे ट्राइबल वोटर दूर होते हैं. फिर भी 2019 में लोकसभा में बीजेपी ने 31% वोट से बहुमत पाया था और ध्रुवीकरण ने 5% से ज्यादा वोट बढ़ाए थे. अब आने वाले चुनावों में भी बीजेपी को इसका फायदा हो सकता है. लेकिन जीत-हार का अंतर कम रह सकता है.

