EXPLAINED: न्यूयॉर्क में ईसाई आबादी ने क्यों चुना मुस्लिम मेयर, ट्रंप की धमकी के बावजदू कैसे जीते जोहरान ममदानी, भारतीयों को सीख क्या?
दुनिया में कभी न सोने वाला शहर न्यूयॉर्क. जहां सपने बिकते हैं और संघर्ष जीते जाते हैं. 4 नवंबर को जब मतजान केंद्रों पर लंबी-लंबी कतारें लगीं, तो ये शहर अपना 111वां मेयर चुन रहा था. नतीजे आते ही एक नाम गूंज उठा- जोहरान क्वामे ममदानी. 34 साल के इस युवा विधायक ने न सिर्फ पूर्व गवर्नर एंड्रूयू कुओमो को हराया, बल्कि ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के कर्टिस स्लिवा को भी पीछे छोड़ दिया. जोहरान दुनिया के सबसे बड़े और रईस शहर के पहले मुस्लिम मेयर बने. जोहरान बहुधार्मिक हैं, यानी पिता महमूद ममदानी मुसलमान, मां मीरा नायर हिंदू और पत्नी कायला सैंटोसुओसो अमेरिकी ईसाई हैं. इसलिए जोहरान ने मेयर चुनाव जीतकर भारत को बड़ी सीख दी है.
तो आइए ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि ईसाई-यहूदियों के शहर का मुसलमान मेयर कैसे बना, न्यूयॉर्क का मेयर बनना कितनी बड़ी बात और जोहरान की जीत से भारत को क्या सीख…
सवाल 1- जोहरान ममदानी की न्यूयॉर्क सिटी में जीत कितनी बड़ी है और यह कैसे मिली?
जवाब- न्यूयॉर्क सिर्फ एक शहर नहीं है, बल्कि ये अमेरिका का आर्थिक इंजन है. 2024 में न्यूयॉर्क की GDP 2.32 ट्रिलियन से भी ज्यादा थी. अगर इसे देश मानें, तो ये दुनिया की 13वीं सबसे बड़ी इकोनॉमी होगा. यह शहर फाइनेंस, हेल्थकेयर, टेक, बायोटेकस रियल एस्टेट और इंश्योरेंस का हब है.
न्यूयॉर्क में वॉल स्ट्रीट है, जहां ग्लोबल ट्रेड होता है. यहां की पॉलिसीज नेशनल मार्केट्स को प्रभावित करती हैं. मेयर का एक फैसला पूरे देश की बिजनेस प्रैक्टिस बदल सकता है. न्यूयॉर्क में यूनाइटेड नेशंस (UN) का हेडक्वार्टर है, जो दुनिया की शांति की बात करता है. इस शहर की आबादी करीब 88 लाख है, जिनमें 37% इमिग्रेंट्स हैं. ममदानी की जीत प्रोग्रेसिव्स के लिए ऐतिहासिक है, क्योंकि वो पहले साउथ एशियन, पहले मुस्लिम और 1892 के बाद सबसे युवा मेयर (34 साल) के हैं.
जोहरान ममदानी को इन 4 बड़ी वजहों से जीत मिली है…
- महंगाई का मुद्दा: ममदानी ने पूरे कैंपेन में सिर्फ एक बात पर फोकस किया कि न्यूयॉर्क बहुत महंगा हो गया है. उन्होंने कहा कि सरकार का काम है लोगों की जिंदगी आसान बनाना. उनके रैलियों में लगे बैनर पर नारे लिखे थे कि एक शहर जो हम अफोर्ड कर सकें और सस्ता घर बनाओ.
- जनता से सीधा जुड़ाव: राजनीति में ज्यादातर वक्त बातें घुमा-फिराकर कही जाती हैं, लेकिन ममदानी ने बिल्कुल साफ बात की. उन्होंने खुलकर कहा कि अमीरों पर टैक्स लगाओ, बच्चों की देखभाल बढ़ाओ और घर को हक बनाओ. ममदानी ने कैंपेन में कहा, ‘ये शहर मजदूरों का है, न कि 1% अमीरों का.’
- इंटरनेट का सही इस्तेमाल: ममदानी को पार्टी के बड़े नेताओं का सपोर्ट नहीं मिला, लेकिन उन्होंने जनता और इंटरनेट का सहारा लिया. उन्होंने स्कैवेंजर हंट, फुटबॉल टूर्नामेंट और LGBTQ बार में देर रात पॉप-अप इवेंट किए. न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, उन्होंने सभी पुराने नियम तोड़ दिए और सीधे लोगों से रिश्ता बनाया.
- युवा कार्यकर्ताओं पर फोकस: ममदानी ने स्वयंसेवकों की संख्या में इजाफा किया. उनकी प्रचार टीम में शामिल युवा उनसे भी कम उम्र के हैं. ज्यादातर को इतने बड़े पैमाने पर काम करने का बहुत कम अनुभव था. लेकिन वे सामान्य सलाहकारों और रणनीतिकारों की तुलना में अधिक सक्षम और प्रभावी साबित हुए.
सवाल 2- जोहरान की बहु-धार्मिक छवि, फिर कैसे ईसाई-यहूदियों के शहर के मेयर बने?
जवाब- जोहरान का जन्म 18 अक्टूबर 1991 को युगांडा के कंपाला में हुआ था. उनके पिता महमूद ममदानी एक मशहूर अकादमिक हैं, जिनका जन्म मुंबई में गुजराती मुस्लिम परिवार में हुआ. मां मीरा नायर ओडिशा के भुवनेश्वर में एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में जन्मीं. वो मशहूर फिल्म डायरेक्टर हैं, जिन्होंने ‘सलाम बॉम्बे’, ‘मॉनसून वेडिंग’ और ‘कामसूत्र’ जैसी फिल्में बनाई हैं. जबकि जोहरान की पत्नी ईसाई हैं. जोहरान ने 2024 में बिना धार्मिक रीति-रिवाजों के सिविल मैरिज की थी. जोहरान ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘मेरा परिवार धर्म को निजी रखता है, लेकिन संस्कृति को सांस लेने देता है.’
जोहरान शिया मुस्लिम हैं, लेकिन वो ईसाई बहुल शहर के मेयर बने हैं. प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यूयॉर्क में 57% ईसाई आबादी है, जिसमें 32% कैथोलिक ईसाई और 25% प्रोस्टेंट ईसाई हैं. यहूदी 11%, मुस्लिम 9% और नास्तिक 25% हैं. फिर भी ममदानी की जीत में 59% ईसाई वोटर्स ने साथ दिया, क्योंकि यहां वोटिंग धर्म पर नहीं, मुद्दों पर होती है. ममदानी की जीत एक स्लैप है उन लोगों को जो धर्म को हथियार बनाते हैं. कुओमो ने ममदानी पर ‘इस्लामोफोबिक अटैक्स’ किए, लेकिन वोटर्स ने खारिज कर दिया. ये दिखाता है कि विविधता में एकता संभव है. एक मुस्लिम मेयर, जो सभी के लिए काम करेगा. ममदानी ने विक्ट्री स्पीच में कहा, ‘मैं मुसलमान हूं, लेकिन जनता के लिए मेयर हूं.’
CBS News के मुताबिक, 91% वोट गिने जाने तक ममदानी को 50.4% वोट मिले. उनके बाद दूसरे नंबर पर निर्दलीय उम्मीदवार कुओमो को 41.6%, जबकि रिपब्लिकन उम्मीदवार कर्टिस स्लिवा को 7% वोट मिले. ममदानो को 10 लाख से ज्यादा वोट मिले, जो 1969 के बाद किसी भी न्यूयॉर्क मेयर उम्मीदवार नहीं मिले थे. इस चुनाव में 20 लाख से ज्यादा लोगों ने वोट डाला, जो पिछले चुनाव के मुकाबले दोगुना है. इससे जाहिर है कि मुसलमान उम्मीदवार होने से फर्क नहीं पड़ता, बल्कि फर्क मुद्दों पर पड़ता है.
सवाल 3- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकियों के बावजूद ममदानी कैसे जीते?
जवाब- ट्रंप ने ममदानी को हराने की बहुत कोशिश की. ट्रंप ने धमकी भी दी कि अगर ममदानी चुनाव जीते, तो न्यूयॉर्क की फेडरल फंडिंग काट दी जाएगी. लेकिन ममदानी ने जवाब दिया कि ये धमकियां हैं, कानून नहीं. यानी दुनिया के सबसे ताकतवर राष्ट्रपति की धमकी के बावजूद न्यूयॉर्क के लोगों ने ममदानी को चुना, क्योंकि न्यूयॉर्क लोकतंत्र का गढ़ है. ममदानी की पैदाइश युगांडा में हुई और न्यूयॉर्क इमिग्रेंट्स से बसा है. इसका फायदा भी ममदानी को मिला.
5 नवंबर को ममदानी की जीत के बाद ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ पर लिखा- ‘और लो यह अब शुरू हो गया.’
सवाल 4- जोहरान ममदानी की जीत से भारत को क्या सीख मिलती है?
जवाब- विदेश मामलों के जानकार और JNU के प्रोफेसर डॉ. राजन कुमार कहते हैं, ‘भारत और अमेरिका की राजनीति बिल्कुल अलग है. न्यूयॉर्क में इमिग्रेंट्स ज्यादा हैं यानी अलग-अलग देशों से लोग आकर बसे हैं. वे लोग धर्म की राजनीति की जगह जमीनी मुद्दों पर फोकस करते हैं. उन्हें रोजमर्रा की जरूरतें पूरा करने वाला नेता चाहिए, न कि धर्म पर बांटने वाला. जोहरान ने जमीनी मुद्दे हल करने का वादा किया, जिससे वो मेयर बने.’
डॉ. राजन कुमार आगे कहते हैं, ‘भारत को न्यूयॉर्क चुनाव से विकास की राजनीति सीखनी चाहिए. भारत का युवा विकास चाहता है, नौकरी चाहता है, कम महंगाई और सस्ती चीजें चाहता है और कॉर्पोरेट कल्चर से परेशान है. अगर राजनेता इन मुद्दों पर चुनाव लड़ें तो यहां भी न्यूयॉर्क जैसा विकास हो सकता है. आज का युवा मंदिर-मस्जिद नहीं देखता, वे सुविधाएं देखता है. लेकिन असल बात यह है कि देश की बागडोर ओल्ड पॉलिटिशियंस के हाथों में है और वे धर्म की राजनीति करना चाहते हैं. असल बात या कड़वा सच तो यह है कि ममदानी की जीत से भारत में कोई असर नहीं होगा, क्योंकि यहां कोई ममदानी की जीत से सीखना नहीं चाहता है.’

