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Janmashtami 2025: विष्णु अवतार होकर भी कहलाए माखन चोर, जन्माष्टमी पर पढ़ें कृष्ण के माखन चोरी की कथा


हर साल भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है. यह पर्व विशेष रूप से भगवान कृष्ण को समर्पित है. मान्यता है कि पंचांग की इसी तिथि में श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था. इसलिए इस दिन कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है. इस साल जन्माष्टमी में 16 अगस्त शनिवार 2025 को है.

भगवान विष्णु ने धरती पर धर्म और सृष्टि की रक्षा के लिए कई अवतार लिए. श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में पूजा जाता है. विष्णु अवतार के रूप में माने जाने वाले कान्हा ने कई लीलाएं रची और अलग-अलग लीलाओं से उन्हें अलग-अलग नाम भी मिले.

इस तरह से श्रीकृष्ण के मुरलीधर, गोपाला, नंदलाला, लड्डू गोपाल, कान्हा, कन्हैया जैसे कई नाम पड़ गए, जिनमें एक नाम माखनचोर भी है. आप यह सोचते होंगे कि विष्णु अवतार माने जाने वाले कृष्ण आखिर क्यों और कैसे कहलाएं माखनचोर. आइए जानते हैं श्रीकृष्ण के बाल्यकाल के माखन चोरी की कथा.

कृष्ण माखन चोर कथा (Makhan Chor Story in hindi)

गोकुल में नंदलाल और मां यशोदा के पुत्र कान्हा को माखन अतिप्रिय था और घर पर भी खूब माखन बनता था और मां यशोदा कान्हा को खूब माखन खिलाती थी. लेकिन एक बार कृष्ण अपने मित्र मधुमंगल के घर गए और कुछ खाने की इच्छा जताई. मधुमंगल अपने घर पर कान्हा के लिए कुछ खाने की व्यवस्था करने लगे. लेकिन उसे कुछ भी नहीं मिला. घर पर केवल बासी कढ़ी थी जोकि वह कृष्ण के लिए लेकर जाने लगे. लेकिन मधुमंगल को यह ठीक नहीं लगा और उसने खुद ही झाड़ी में छिपकर सारी कढ़ी पी ली. जब कान्हा ने मधुमंगल से इसका कारण पूछा तो उसने कान्हा को सारी बात बताई.

कृष्ण ने कहा कि मुझे ऐसा कमजोर और दुबला पतला मित्र पसंद नहीं, तुम मेरे जैसा तगड़े हो जाओ. तब मधु मंगल ने कहा कि तुम्हारी मां तुम्हें रोज मक्खन दूध खिलाती है. लेकिन मेरे माता-पिता तो निर्धन है. मैंने तो कभी माखन खाया तक नहीं. इतने में कान्हा ने मधुमंगल से कहा कि मैं तुम्हें प्रतिदिन माखन खिलाऊंगा. फिर कान्हा अपने सखा मधुमंगल के साथ मिलकर पड़ोस के घर से माखन चुराकर उसे खिलाने लगे और उसके संग स्वयं भी खाने लगे जिस कारण उनका नाम माखन चोर पड़ा.

कान्हा को माखन चुराते हुए जब पड़ोस की महिलाएं देखती तो यशोदा मां से शिकायत करने पहुंच जाती और कहती कि- मैया तुम्हारा लाल तो बड़ा ही शरारती है. वह हमारे घर की मटकी तोड़कर माखन चुराता है. पहले तो मां यशोदा को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ. लेकिन एक बार यशोदा ने भी कृष्ण को माखन चुराते हुए रंगे हाथ पकड़ लिया. गुस्से में यशोदा ने कहा कि कन्हैया माखन क्यों चुराते हो? तब नटखट कन्हैया मुस्कुराते हुए बोले- मैया मैं माखन नहीं चुराता, बल्कि सबके घर के माखन का स्वाद चखता हूं, जिससे कि पता चल सके कि किसका माखन सबसे अच्छा है.

जन्माष्टमी के बाद दही हांडी का पर्व मनाया जाना भी कान्हा की इसी माखन चोरी लीला का ही प्रतीक है. जिसमें मटकी तोड़कर नटखट कान्हा की बाल लीलाओं का स्मरण किया जाता है.

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