Supreme News24

Janmashtami 2025 Bhog: जन्माष्टमी पर क्यों लगाया जाता है 56 भोग, 50 या 55 क्यों नहीं


16 अगस्त 2025 को जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है. हर साल भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर यह पर्व मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इसी तिथि पर श्रीहरि के आठवें अवतार के रूप में द्वापर युग में कृष्ण का जन्म धरती पर हुआ था. हिंदू धर्म को मानने वालों के लिए जन्माष्टमी महत्वपूर्ण पर्व में एक है.

जन्माष्टमी पर कान्हा के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है, विशेष श्रृंगार किया जाता है, आरती होती है और महाप्रसाद अर्पित किए जाते हैं. महाप्रसाद में कृष्ण को एक-दो नहीं बल्कि पूरे 56 प्रकार के भोग चढ़ाए जाते हैं. आइये जानते हैं कान्हा के 56 भोग कौन-कौन से हैं.

कृष्ण के 56 भोग की थाली में कया-क्या होता है

कहा जाता है कि पूरी दुनिया में छह प्रकार के रस (स्वाद) हैं, जिसमें मीठा, नमकीन, कड़वा, अमलीय, खट्टा और कैसला स्वाद शामिल है. इन्हीं छह स्वाद के मेल से 56 पकवान बनाए जाते हैं. कान्हा के 56 भोग में मुख्य रूप से- माखन, मिश्री, पंजीरी, खीर, रसगुल्ला, मालपुआ, जलेबी, जीरा लड्डू, काजू-बादाम की बर्फी, पेड़ा, घेवर, रबड़ी, मूंग का हलवा, पिस्ता, बर्फी, घी, शक्कर पारा, मठरी, चटनी, पकौड़े, साग, दही, चावल, कढ़ी, खिचड़ी, केला, आम, किशमिश, आलू बुखारा, सेब, अंगूर, मुरब्बा, पापड़, चीला, दलिया, टिक्की, पुड़ी, दुधी की सब्जी, बैंगन की सब्जी, शहद, कचौरी, रोटी, छाछ, मीठे चावल, चना, भुजिया, नारियल, पान, मेवा, बादाम का दूध, शिकंजी आदि शामिल हैं. लेकिन इस बात खास ध्यान रखें कि भोग तैयार करते समय लहसुन-प्याज का इस्तेमाल ना करें.

कान्हा 56 भोग ही क्यों 50 या 55 क्यों नहीं

कान्हा के 56 भोग के बारे में तो कई लोगों ने सुना होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों कान्हा जी को 56 प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं, 50 या 55 क्यों नहीं. दरअसल इसके पीछे इंद्रदेव के क्रोधित होने और श्रीकृष्ण के गोवर्धन पर्वत को कनिष्ठ ऊंगली में उठा लेने की कथा जुड़ी है. यह कथा काफी प्रचलित भी है.

कथा के अनुसार- एक बार सारे ब्रजवासी इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए पूजा की तैयारी में जुटे हुए थे. नन्हे कृष्णा यह सब देख रहे थे, तभी उन्होंने नंद बाबा से पूछा कि लोग इंद्रदेव की पूजा क्यों कर रहे हैं. नंद बाबा ने जवाब दिया कि, इंद्रदेव प्रसन्न होंगे तो अच्छी वर्षा होगी. कान्हा ने कहा कि वर्षा कराना तो इंद्रदेव का काम है. हमें तो गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए. क्योंकि गोवर्धन पर्वत के कारण ही हमें फल, सब्जियां और पशुओं को चारा मिलता है.

कृष्ण की बात लोगों को सही लगी और सभी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे. लेकिन इस बात से इंद्रदेव क्रोधित हो गए और उन्होंने इतनी वर्षा कराई कि ब्रजवासी परेशान हो गए. इंद्रदेव के कहर से ब्रजवासियों की रक्षा करने के लिए कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली से उठा लिया. बृजवासियों ने अपने पशुओं के साथ पर्वत के नीचे शरण ली. कृष्ण पूरे 7 दिनों तक गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर लिए खड़े रहे. आखिरकार इंद्रदेव को कृष्ण के दैवीय स्वरूप का आभास हुआ. उन्होंने कृष्ण से माफी मांगते हुए आठवें दिन वर्षा रोक दी.

इन सात दिनों तक कृष्ण पर्वत को अपनी कनिष्ठ उंगली पर उठाए रहे और इस दौरान उन्होंने कुछ भी नहीं खाया. तब मां यशोदा ने अपने कान्हा के लिए 56 भोग तैयार किया. क्योंकि एक दिन में यशोदा अपने लाल को आठ बार भोजन करती थी. ऐसे में 7 सात दिनों के आठ बार भोजन को जोड़कर 56 भोग (7*8=56) तैयार किए गए और कृष्ण को खिलाया गया. कहा जाता है कि इसके बाद से ही कान्हा को छप्पन भोग चढ़ाने की परंपरा की शुरुआत हुई.

ये भी पढ़ें: Krishna Janmashtami 2025: आने वाली कृष्ण जन्माष्टमी, वास्तु अनुसार ऐसे सजाएं कान्हा का झूला

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.



Source link

Thank you so much for supporting us.

Discover more from Taza News

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading