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JNU में 88 लाख का घोटाला, पूर्व प्रोफेसर समेत 6 के खिलाफ CBI ने दर्ज किया केस, बड़े हेरफेर का खुलासा


CBI ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के स्कूल ऑफ एनवायरमेंटल साइंसेज के पूर्व प्रोफेसर ए.एल. रमनाथन और 5 अन्य लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी और धन के दुरुपयोग का केस दर्ज किया है. आरोप है कि इन लोगों ने विश्वविद्यालय के प्रोजेक्ट्स में 88 लाख रुपये से अधिक की रकम का गलत इस्तेमाल किया.

सीबीआई को यह जांच दिल्ली पुलिस से मिली है. फरवरी 2022 में वसंत कुंज नॉर्थ थाने में दर्ज एफआईआर के बाद अब दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना की मंजूरी पर यह मामला एजेंसी को सौंपा गया है. 

धोखाधड़ी के मामले में ये आरोपी फरार

इस मामले में और जिन आरोपियों के नाम सामने आए हैं, उनमें सेक्शन ऑफिसर स्नेह आर. असीवाल और उर्मिल पुनहानी, प्रोजेक्ट असिस्टेंट के. मुरली, कंप्यूटर ऑपरेटर रितेश कुमार और संविदा प्रोजेक्ट स्टाफ नजीर हुसैन शामिल हैं.

विश्वविद्यालय के अनुसार, साल 2021 के वार्षिक बैलेंस शीट तैयार करते समय वित्तीय गड़बड़ियां सामने आई थीं. इसके बाद वाइस-चांसलर ने मामला वित्त समिति को भेजा. समिति ने फैक्ट चेक की जांच के लिए एक फैक्ट-फाइंडिंग पैनल बनाया. जांच के दौरान यह सामने आया कि अलग-अलग प्रोजेक्ट्स के खातों में ‘गलत कुल’ दर्ज किए गए थे, जिससे अतिरिक्त भुगतान हो गया.

वेंडर्स ने कंपनियों के जरिए फर्जी बिल किया जमा

जांच समिति के अधिकारी ने बताया कि प्रोफेसर रमनाथन के प्रोजेक्ट में लगभग 88,10,712 रुपए की राशि का अनुचित तरीके से उपयोग हुआ. समिति ने यह भी पाया कि कई वेंडर्स ने शेल कंपनियों के जरिए फर्जी बिल जमा किए थे. समिति ने सिफारिश की है कि ऐसे विक्रेताओं के लाइसेंस रद्द किए जाएं, उन्हें ब्लैकलिस्ट किया जाए और उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई हो. 

इसके अलावा, उपयोगिता प्रमाण पत्र (Utilisation Certificates) में भी हेरफेर के संकेत मिले. पैनल ने सुझाव दिया कि ऐसे प्रमाण पत्रों की ऑडिटिंग की जाए, ताकि उनकी प्रामाणिकता सुनिश्चित हो सके. 

स्टाफ और आउटसोर्स कर्मी भी घोटाले में शामिल

जांच में यह भी सामने आया कि न केवल नियमित कर्मचारी, बल्कि कांट्रैक्ट पर काम करने वाले स्टाफ और आउटसोर्स कर्मी भी शुरुआती तौर पर इस कथित घोटाले में शामिल दिख रहे हैं. विश्वविद्यालय ने प्रोफेसर रमनाथन और अन्य के खिलाफ सतर्कता (विजिलेंस) कार्रवाई शुरू की और वित्त पोषण करने वाली एजेंसियों जैसे, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग को इसकी जानकारी दी.

यह मामला उच्च शिक्षण संस्थानों में वित्तीय पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है. सीबीआई की जांच से यह साफ होगा कि 88 लाख रुपए से अधिक की यह रकम किसने और किस उद्देश्य से हड़पी.

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