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Sarva Pitru Amavasya 2025: विदेश में रहकर कैसे करें श्राद्ध? शास्त्र और परंपरा से जानें रहस्य


Sarva Pitru Amavasya 2025: पितृपक्ष का समापन सर्वपितृ अमावस्या पर होता है. यह वह दिन है जब व्यक्ति उन सभी पूर्वजों को तर्पण कर सकता है जिनकी तिथि पर श्राद्ध संभव न हो पाया. भारतीय परंपरा में पितरों को तृप्त करना जीवन का अनिवार्य कर्तव्य माना गया है.

लेकिन आधुनिक समय में एक बड़ी चिंता यह भी है कि जो लोग विदेशों में रहते हैं वे कैसे यह कर्म करें? क्या बिना गंगा, पीपल और ब्राह्मणों के श्राद्ध पूर्ण हो सकता है? शास्त्र इसका उत्तर हां में देते हैं.

पंचांग, 21 सितम्बर 2025 (रविवार)

  • तिथि: सर्वपितृ अमावस्या
  • सूर्योदय: प्रातः 06:09 बजे
  • सूर्यास्त: सायं 06:16 बजे
  • अमावस्या तिथि प्रारंभ: 20 सितम्बर, रात 10:59 बजे
  • अमावस्या तिथि समाप्त: 22 सितम्बर, प्रातः 03:24 बजे
  • नक्षत्र: पूर्वा फाल्गुनी (20 सितम्बर रात्रि तक), फिर उत्तराफाल्गुनी
  • योग: सुकर्मा
  • करण: नाग
  • सूर्य राशि: सिंह
  • चंद्र राशि: कन्या

इस दिन सूतक का प्रभाव भारत में नहीं होगा, क्योंकि ग्रहण अन्य देशों में दिखाई देगा. अतः भारत में और विदेशों में रहकर भी श्राद्ध बिना बाधा के किया जा सकता है.

शास्त्रीय प्रमाण

धर्मशास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि श्राद्ध कर्म में भावना सर्वोपरि है. मनुस्मृति कहती है- यत्र क्व चापि वसति तत्रैवोदकदानतः. पितॄन् तर्पयते भक्त्या सततं चानुपाल्यताम्॥ यानी जहां भी व्यक्ति रहे, वहीं श्रद्धा और जलदान से पितरों की तृप्ति हो जाती है.

गरुड़ पुराण मेे लिखा है कि देशेऽपि अन्यत्र वसता तर्पणं निर्विघ्नत:. शुद्धया यत्कृतं कर्म तत्सर्वं फलदं भवेत्॥ इसका आशय है कि विदेश में किया गया श्राद्ध भी उतना ही फल देता है जितना भारतभूमि पर.

विदेश में श्राद्ध की विधि

संकल्प

श्राद्ध का आरंभ संकल्प से होता है. व्यक्ति उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके कहे- आज सर्वपितृ अमावस्या पर, अमुक गोत्र के पितरों की तृप्ति हेतु यह श्राद्ध कर रहा हूं.

तर्पण

स्वच्छ जल या गंगाजल लें. उसमें तिल, पुष्प और अक्षत डालें. तीन बार जल अर्पित करते हुए उच्चारण करें- ॐ पितृभ्यः स्वधा.

पिंडदान

आटे या चावल की गोलियां बनाकर पिंड अर्पित करें. यदि संभव न हो तो केवल तिल-जल से भी पिंडदान का फल मिलता है.

अन्न और दान

विदेश में ब्राह्मण न मिलें तो मंदिर, ट्रस्ट, पक्षियों, गायों या किसी जरूरतमंद को अन्न दें. शास्त्र मानते हैं कि भूखे को भोजन कराने से पितर तृप्त होते हैं.

मंत्रोच्चार

श्राद्ध में यह श्लोक अवश्य पढ़ें- स्वधा नाम्ना यथाहूताः पितरः प्रतिगृह्यताम्. अनेन तर्पणेनैव तृप्तिं यान्तु परायणाः॥

समापन

दीपक जलाकर, धूप दिखाकर प्रार्थना करें- हे पितरों! हमें आशीर्वाद दें, रोग-शोक से रक्षा करें और कुल-वंश की उन्नति करें.

क्यों है यह दिन विशेष?

सर्वपितृ अमावस्या को सर्वव्यापी श्राद्ध कहा गया है. जिन पूर्वजों का श्राद्ध किसी कारणवश न हो पाया हो, उनकी तृप्ति के लिए यही अंतिम अवसर माना जाता है. इस दिन किया गया तर्पण पितरों को संतोष प्रदान करता है और वंशजों को स्वास्थ्य, समृद्धि व संतति सुख का आशीर्वाद मिलता है.

विदेश में रहना श्राद्ध करने की बाधा नहीं है. यदि गंगाजल न मिले तो साधारण जल, यदि ब्राह्मण न मिलें तो भूखों को अन्न, यदि पीपल न हो तो तुलसी, इन सबके विकल्प शास्त्रों ने बताए हैं. असल में श्राद्ध का सार है श्रद्धा और संकल्प. यही श्रद्धा पितरों तक पहुंचकर उन्हें तृप्त करती है और वंशजों का जीवन मंगलमय बनाती है.

FAQs

Q1. क्या विदेश में श्राद्ध करना मान्य है?
हां, मनुस्मृति और गरुड़ पुराण के अनुसार श्राद्ध कहीं भी किया जा सकता है. भावना और संकल्प ही मूल है.

Q2. विदेश में ब्राह्मण न मिलने पर क्या करें?
किसी भूखे, जरूरतमंद, पक्षी या गाय को अन्नदान करें. यह भी पितरों तक पुण्य पहुँचाता है.

Q3. पिंडदान के लिए क्या विकल्प हैं?
आटे या चावल की गोलियां बनाएं, या केवल तिल-जल अर्पण करें.

Q4. भारत में परिवारजन की ओर से श्राद्ध करवाना मान्य है क्या?
हां, यदि प्रवासी स्वयं न कर पाएँ तो भारत में परिजन उनके नाम से श्राद्ध कर सकते हैं.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.



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